Lyrics: मजरूह सुल्तानपुरी
Singer: मोहम्मद रफ़ी
ओ ज़ालिमा, चला कहाँ
बेरुखी का वक्त ये नहीं है, मेरी जाँ
ओ ज़ालिमा चला कहाँ...
हाय रे ये हुस्न, ये उभार, ये जवानी
दिल है खून खून, और जिगर है पानी पानी
कर के खून पानी, अरे क्या मिलेगा जानी
आ पलट के आ यहीं है, प्यार का समां
ओ ज़ालिमा चला कहाँ...
नाज़ का, अदा का, यूँ ना मार यार फंदा
इस तरह न चल के, चाल भूल जाये बंदा
हाय हाय हाय अरे दिल कुचल न जाये
इक ज़रा संभल के निकली निकली मेरी जाँ
ओ ज़ालिमा चला कहाँ...
क्या करूँ बुज़ुर्ग कह गए हैं बात ऐसी
दिल लगा गधी से तो परी की बात कैसी
कोई तुझको परखे, अरे इस मेरी नज़र से
तु मुझे पसंद है तो जलता है जहां
ओ ज़ालिमा चला कहाँ...